मेरी प्रकृति प्रेम है; क्योंकि केवल प्रेम ही संसार को परिवर्तित कर सकता है …
— महावतार बाबाजी
वर्ष 1920 में 25 जुलाई को परमहंस योगानन्दजी की भेंट महावतार बाबाजी से हुई। यह भेंट योगानन्दजी की उत्कट प्रार्थना का परिणाम थी, जो उन्होंने दुनियाभर में क्रियायोग की शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए अमेरिका की यात्रा पर प्रस्थान करने से पहले की थी।
महावतार बाबाजी के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के इस महत्वपूर्ण अवसर पर एक वाईएसएस संन्यासी द्वारा संचालित ध्यान तथा प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
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